पश्चिमी यूपी में बीजेपी के दांत खट्टे करने को तैयार अखिलेश-जयंत की जोड़ी

लखनऊ : पूरब से लेकर पश्चिम तक उत्तर प्रदेश की सियासी फजाओं में चर्चाओं का बाजार तो जोर पर है ही साथ ही सवाल इस बात का है कि क्या उत्तर प्रदेश के दो नौजवान अखिलेश यादव औऱ जयंत चौधरी उत्तर प्रदेश के योगी राज के अंत का जो दावा कर रहे हैं उसे पूरा कर पाएंगे। क्या उत्तर प्रदेश की सियासी फजाओं में जो अंदेश के बादल मंडरा रहे हैं वो छंट पाएंगे। सवाल इस बात का है कि क्या ये नई नवेली दोस्ती का गठबंधन असर दिखा पाएंगा। बताएंगे कि स्थितियां क्या इशारा करती हैं।

समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के बीच चुनावी गठबंधन लगभग तय है। दोनों पार्टियां जल्द गठबंधन का ऐलान करेंगी। रालोद की जिम्मेदारी चौधरी जयंत सिंह पर है और पार्टी अध्यक्ष के तौर उनका पहला इम्तिहान है। इसलिए वो रालोद के परंपरागत वोट को साथ जोड़कर विधानसभा चुनाव में खुद को साबित करने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। माना जा रहा है कि सपा और रालोद के बीच गठबंधन का ऐलान 21 नवंबर को होगा और दोनों पार्टियों में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला भी तय हो गया है।

कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन ने चौधरी जयंत सिंह को खुद को स्थापित करने का एक अच्छा मौका दिया है। जयंत भी ये बात समझ रहे हैं, इसलिए वो प्रदेश और केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध जताने का कोई मौका नहीं चूकते।किसान आंदोलन के बाद वो जाट मतदाताओं में फिर अपनी पैठ बनाने में जुटे हैं।वहीं, मुस्लिम और दलित पर भी नजर हैं। साल 2009 में बीजेपी के साथ गठबंधन के बाद मुस्लिम RLD से छिटक गया था।2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाट मतदाताओं का रुझान भी बीजेपी की तरफ हो गया लेकिन किसान आंदोलन से पश्चिमी यूपी में रालोद को पॉलिटिकल माइलेज मिला है,मुसलमानों में भी नाराजगी कम हुई है, पर वो अभी भी रालोद के अकेले वोट देने के लिए तैयार नहीं है।

कैराना के कई किसान कहते हैं कि रालोद-सपा गठबंधन में चुनाव लड़ते हैं, तो गठबंधन को वोट देंगे…ये पूछने पर रालोद अकेले चुनाव लड़ती है, तो वो खामोश हो जाते हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जाट मतदाता भी एकजुट होकर रालोद को वोट नहीं देंगे क्योंकि, पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जाटों में अपनी पकड़ बनाई है। वे मानते हैं कि जिस सीट पर रालोद का उम्मीदवार नहीं होगा या उसका मुकाबला भाजपा के कद्दावर नेता से होगा, वहां जाट मतदाता भाजपा को वोट कर सकते हैं ।वहीं रालोद को भी मुस्लिमों को बेहतर प्रतिनिधित्व देना होगा क्योंकि, मुसलमानों को दरकिनार कर वो जाट मतदाताओं की बुनियाद पर कोई सीट नहीं जीत सकती है।वहीं दलितों की संख्या भी अच्छी खासी है।

पश्चिमी यूपी में जाट करीब 20 फीसदी है वहीं मुस्लिम लगभग 30 प्रतिशत और दलित 25 फीसदी है।ऐसे में जयंत को जाट मतदाताओं के साथ दलित और मुस्लिम को साथ जोड़ना होगा।सपा के साथ आने से मुस्लिम मतदाता वोट कर सकते हैं,पश्चीमी यूपी के मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद और बरेली मंडल की ज्यादातर सीट पर जीत के लिए जाट, मुस्लिम और दलित जरूरी हैं…ऐसे में देखना दिलचस्प है कि क्या पश्चिमी यूपी में ये गठबंधन कमाल कर पाएगा।