झटकों पर झटका दे रहे अखिलेश ने बीएसपी को ये कहां लाकर पटका !

छोटे नेताजी अखिलेश यादव क्या बने कि नेताजी के अवतारी बनते जा रहे हैं    और झटकों पर झटका विरोधियों को दे रहे हैं और संस्कारी होते जा रहे हैं अखिलेश की चालों से मायावती का हाल बेहाल है स्थितियां ये हैं कि पहले बीएसपी नेताओं ने अखिलेश को अपनाया और अब अखिलेश यादव ने कांशीराम को अपना लिया है मायावती जिनके आदर्शों का आदेश मानकर बीएसपी को चला रहीं थी अब वो आदर्श अखिलेश अपना रहे हैं और सियासी मजबूती के लिए कांशीराम को काका बता रहे हैं बीएसपी के वोटबैंक को अपना बनाने के लिए या फिर सियासी धार को और धारदार बनाने के लिए राज कुछ भी हो लेकिन अखिलेश यादव एक बड़ा दांव चलने वाले हैं और अब कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण करने वाले हैं उत्तर प्रदेश की राजनीति में सपा प्रमुख अखिलेश यादव इन दिनों नई राजनीतिक इबारत लिखने की कवायद में जुटे हैं !

डॉ. लोहिया को अपना आदर्श मानने वाली सपा को डॉ. अंबेडकर के बाद बीएसपी संस्थापक कांशीराम में अपना सियासी भविष्य दिखने लगा है सपा अपने यादव-मुस्लिम वोटबैंक को साधे रखते हुए बीएसपी के दलित मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है इसीलिए अंबेडकर की विरासत और बीएसपी नेताओं को अपनाने के साथ-साथ अखिलेश यादव अब मायावती की सियासत की सबसे बड़ी ताकत रहे कांशीराम पर दांव लगाने जा रहे हैं सपा प्रमुख अखिलेश यादव तीन अप्रैल को रायबरेली के दीन शाह गौरा ब्लॉक में स्थित कांशीराम महाविद्यालय में बीएसपी के संस्थापक कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण करेंगे सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य इस कार्यक्रम को आयोजित कर रहे हैं, जहां अखिलेश यादव कांशीराम की मूर्ति अनावरण के साथ-साथ बड़ी जनसभा को भी संबोधित करेंगे ऐसे में सभी के मन में सवाल ये उठता है कि डॉ. लोहिया के आदर्शों और समाजवादी विचाराधारा को लेकर चलने वाली सपा आखिर बीएसपी के संस्थापक और मायावती की सियासत के बैकबोन रहे कांशीराम पर क्यों मेहरबान होने जा रही है दलित समुदाय के मसीहा डॉ. भीमराव अंबेडकर की सियासी परिकल्पना को लेकर कांशीराम ने बीएसपी का गठन किया था और दलितों के बीच राजनीतिक चेतना जगाई थी बीएसपी के महापुरुषों और आदर्शों में अंबेडकर और कांशीराम का सबसे ऊपर दर्जा है, जबकि सपा लोहिया की समाजवादी विचाराधारा को लेकर चलती रही है !

अखिलेश यादव ने लोहिया के साथ-साथ अंबेडकर की सियासत को भी अपना लिया है और कांशीराम पर दांव खेलने जा रहे हैं सपा ने ‘बाबा साहेब वाहिनी’ का गठन किया तो पार्टी के कार्यक्रमों और मंचों पर अंबेडकर की तस्वीर साफ दिखाई देती है ऐसे में अंबेडकरवादी सियासत पर सपा पूरी तरह से अपना दावा मजबूत कर रही है कांशीराम की सियासी प्रयोगशाला से निकले अंबेडकरवादी विचारधारा वाले नेताओं को अखिलेश पहले से अपनी पार्टी में राजनीतिक अहमियत दे रहे हैं स्वामी प्रसाद मौर्य से लेकर इंद्रजीत सरोज रामअचल राजभर, आरके चौधरी, लालजी वर्मा, त्रिभवन दत्त, डॉ. महेश वर्मा जैसे पुराने बसपाई नेता अब अखिलेश के साथ हैं कांशीराम से सियासत का हुनर सिखने वाले नेताओं के साथ-साथ कांशीराम को भी अखिलेश अपनाने जा रहे हैं, उसके पीछे बीएसपी के वोटबैंक को अपने पाले में लाने की रणनीति मानी जा रही है !

दरअसल, कांशीराम ने ही बीएसपी का गठन किया था और दलित राजनीति खड़ी की थी, जिसके सहारे मायावती यूपी में चार बार मुख्यमंत्री रहीं यूपी में बीएसपी के दलित मतदाताओं को अखिलेश अपने साथ लेने की रणनीति पर काम कर रहे हैं सपा महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य कहते हैं कि मायावती डॉ. अंबेडकर और कांशीराम की विचारधारा से पूरी तरह से भटक चुकी हैं ऐसे में अखिलेश यादव अब लोहिया के साथ अंबेडकर-कांशीराम की विचारधारा को लेकर चलना चाहते हैं, क्योंकि वक्त की जरूरत भी यही है अंबेडकर-कांशीराम की राह पर चलकर बीजेपी से मुकाबला किया जा सकता है, क्योंकि दलित और पिछड़ों का हक मारा जा रहा है कांशीराम के बहाने अखिलेश यादव की कोशिश दलित समाज के साथ भावनात्मक रिश्ता कायम रखने की है वो दलित समाज को ये संदेश देने की कोशिश में हैं कि सपा भी कांशीराम का सम्मान और सियासी अहमियत देने में किसी तरह से पीछे नहीं है इस तरह वो मायावती को अलग रखकर बीएसपी के महापुरुषों और नेताओं के जरिए दलित समाज से अपना रिश्ता बनाए रखना चाहते हैं !

 मायावती की सियासत के बैकबोन कांशीराम ही रहे हैं, जिन्होंने गांव-गांव घूम-घूमकर दलित राजनीति खड़ी की है  ऐसे में कांशीराम को लेकर दलितों के बीच आज भी उसी तरह का सम्मान है, जिसके जरिए अखिलेश दलितों के विश्वास जीतने की कोशिश में हैं. 2012 के बाद से बीएसपी का सियासी ग्राफ लगातार गिरा है ऐसे में सपा की कोशिश बीएसपी के दलित और अति पिछड़ों को अपने पाले में लाने की है

अखिलेश लगातार मायावती और बीएसपी को बीजेपी की बी-टीम के होने का आरोप लगाते हैं !

इस नेरेटिव के चलते 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा को तगड़ा झटका लगा था मुस्लिम वोटबैंक का पूरा-पूरा वोट सपा में चला गया…बीएसपी का कोर वोटबैंक दलित समुदाय का वोट भी सपा को पहले से ज्यादा मिला मैनपुरी और खतौली के उपचुनाव में जिस तरह से दलित मतदाताओं का झुकाव सपा की तरफ हुआ है, उससे अखिलेश यादव के हौसले बुलंद हो गए हैं अखिलेश यादव कांशीराम और डॉ. अंबेडकर के सहारे बसपा के सियासी आधार को पूरी तरह से अपने साथ जोड़ने की रणनीति कर रहे हैं यूपी की राजनीति में अखिलेश अपना सियासी वोटों का आधार 32 फीसदी से बढ़ाकर 40 फीसदी के करीब ले जाने के लिए हरसंभव कोशिश में जुटी है अखिलेश यादव की नजर बीएसपी के वोटबैंक पर है, जिसे साधने की कवायद 2019 चुनाव के बाद से कर रहे हैं इसी कड़ी में 2022 के चुनावों में कुछ हद तक सफलता भी मिली थी अब कांशीराम के सहारे अखिलेश यादव सपा में दम फूंक रहे हैं और 2024 में एक बड़ी फतह की प्लानिंग कर रहे हैं सपाईयों को लगता है कि अगर बीएसपी का वोटबैंक सपा के खाते में आ गया तो फिर सपा के लिए सियासी जंग को जीतना आसान हो जाएगा लेकिन ये सपना पूरा होगा कि नहीं ये वक्त बताएगा