साइलेंट मोड में अखिलेश यादव का बड़ा धमाका, जयंत के साथ मिलकर निकाय चुनाव का !

निकाय चुनाव की तारीखें भले न मुकर्रर हुईं हों लेकिन सियासी अंदाज का दौर एक नई कहानी लिख रहा है अखिलेश यादव का बदला अंदाज और तीखे तेवर अब नई सपा में नई ऊर्जा का संचार कर रहे हैं अखिलेश यादव ने सत्ताधारियों की पुंगी बजाने के लिए अपने यार जयंत के साथ मिलकर एक ऐसा प्लान तैयार किया है जिससे बीजेपी को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है अखिलेश यादव ने जहां जयंत के साथ अपना याराना बरकरार रखने का प्लान तैयार किया है तो वहीं निकाय चुनाव की वो रणनीति बनाई है जिससे कई सीटों का समीकरण गड़बड़ाने वाला है  अखिलेश यादव ने साइलेंट मोड में ऐसा धमाका किया है जिसका आभास बीजेपी को कभी था ही नहीं  दरअसल लोकसभा चुनावों से पहले निकाय चुनाव होने हैं इस चुनाव को लेकर सत्ताधारी बीजेपी से लेकर मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी तक ने कमर कस ली है इस चुनाव को पार्टियां लोकसभा से पहले का रियालिटी चेक मान रही है ऐसे में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने निकाय चुनाव लड़ने की अपनी रणनीति का खुलासा कर दिया है  !

 अखिलेश यादव ने कहा है कि, वे ये चुनाव गठबंधन की सहयोगी पार्टी के साथ लड़ेगीं इस लिहाज से राष्ट्रीय लोकदल पहली बार समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने जा रहा है निकाय चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ आऱएलडी के आने से कई समीकरण बदलने वाले हैं उधर अध्यक्ष जयंत चौधरी ने गठबंधन के समन्वय के लिये समिति का गठन किया है इस समिति में 7 सदस्यों को रखा गया है अखिलेश यादव के ऐलान के बाद पार्टी ने सभी जिलों से जिताऊ उम्मीदवारों के आवेदन पत्र मांगे हैं आरएलडी भी सभी जिलों से जिताऊ उम्मीदवारों के आवेदन ले रही है जिसके बाद समिति के साथ मंत्रणा करके नाम घोषित किए जाएंगे निकाय चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ आने से पश्चिमी यूपी के कई जिलों में चुनावी समीकरण बदलने वाला है मेरठ, बागपत, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा समेत कई जिलों में आरएलडी का बड़ा वोट बैंक है  जो गठबंधन की स्थिति में दोनों ही दलों को काफी फायदा पहुंचाएगा ये गठबंधन जाठ, गुजर्र वोटों को समाजवादी पार्टी में और मुस्लिम वोटर को रालोद में ला सकता है वहीं दूसरी ओऱ सपा और आरएलडी के गठबंधन से निकाय चुनाव में टिकट बंटवारे या अन्य कारणों से खेमेबंदी बढ़ने की संभावना ज्यादा रहेगी गठबंधन के चलते सीटों पर समझौता एक बड़ी चुनौती है नगर निगम में महापौर और नगर पालिका परिषद और नगर पालिकाओं में चेयरमैन पद के लिए पश्चिमी यूपी के कई जिलों में दोनों दलों के दावेदार आमने-सामने हैं छोटे स्तर का चुनाव होने के चलते उम्मीदवार व्यक्तिगत स्तर पर भी अपना प्रभाव रखते हैं ऐसे में कई बार मजबूत उम्मीदवार भी हार का सामना कर सकता है पिछले निकाय चुनाव में समाजवादी पार्टी एक भी नगर निगम की सीट नहीं जीत पाई थी 14 सीटों पर बीजेपी औऱ 2 सीटें मेरठ और अलीगढ़ बीएसपी के खाते में गई थी हालांकि बाद में मेरठ की मेयर सुनीता वर्मा सपा में शामिल हो गईं थी  !

ऐसे में सपा चाहेगी कि उसकी मेरठ सीट बरकार रहे पश्चिम में आरएलडी का काफी दबदवा है वहीं मेरठ सीटपर आरएलडी का भी मेयर रह चुका है तो आरएलडी इस सीट को खुद लेना चाहेगी हालांकि इस बार सपा आऱएलडी के साथ गठबंधन में है तो वो इस सीट को बचाने की पूरी कोशिश करेगी वहीं सपा और आरएलडी मथुरा सीट पर भी कब्जा जमाना चाहेगी सपा अपने कोर वोट बैंक और रालोद के वोटरों का इस्तेमाल कर इस पर अपना कब्जा जामाने की पूरी कोशिश करेगी मथुरा सीट पर बीजेपी का कब्जा है बीजेपी के श्रीकांत शर्मा दो बार मेयर चुने जा चुके हैं इस बार भी सीट अनारक्षित हैं ऐसे में सपा और आरएलडी यादव, जाट और मुस्लिम वोटरो का समीकरण बनाकर सीट पर कब्जा करने की कोशिश करें वहीं अगर अलीगढ़ नगर की बात करें तो पिछली बार यहां से बीएसपी के मोहम्मद फुरकान जीते थे इस बार अलीगढ़ महापौर की सीट अनारक्षित है वहीं इस बार अलीगढ़ नगर निगम का दायरा बढ़ा है जिससे जातीय गणित भी बदला है शहर में ओबीसी के साथ सामान्य जाति का वोट भी बढ़ा है यहां पर बीएसपी जहां इस सीट को बरकरार रखना चाहेगी तो वहीं सपा आरएलडी की मदद से इस सीट को अपने कब्जे में लेना चाहेगी देखना ये है कि अखिलेश यादव ने जिस उम्मीद के साथ जयंत के साथ निकाय चुनाव में गठबंधन को बरकरार रखने का फैसला किया है उसका कितना फायदा सपा को मिलता है और कैसे दोनों दोस्त मिलकर बीजेपी की पुंगी बजाने का काम करते हैं !